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सरकार ने 2018 के केन्द्रीय बजट में 10 सरकारी और 10 निजी संस्थानों को विश्व स्तरीय बनाने की घोषणा की थी। दो वर्षों के बाद 900 विश्वविद्यालयों में से मात्र छः को ही ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमीनेंस ‘(IOE) योजना के लिए चुना जा सका है। ऐसा लगता है कि आई ओ ई को एक नए परिप्रेक्ष्य से देखने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद 114 संस्थानों ने सरकार द्वारा निर्धारित नीति के अंतर्गत आवेदन किया था। चयन समिति ने चयन की शर्तों को सार्वजनिक नहीं बनाया था। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि चयन प्रक्रिया मनमाने ढंग या एकपक्षीय तरीके से चलाई गई।
चयन-प्रक्रिया की कमियां –
किसी विश्वविद्यालय को विकसित होने में वर्षों लग जाते हैं। सरकार को चाहिए था कि पहले से ही जमे हुए विश्वविद्यालयों को ही आई ओ ई की दावेदारी के लिए अनुमति देती। बजाय इसके, सरकार ने नए ऊभरे संस्थानों को भी पुराने संस्थानों के समान ही दावेदारी का अधिकार दे दिया। यह सरकार की एक बड़ी भूल रही।
समिति को चाहिए था कि वह, विश्व स्तर पर संस्थानों की रैंकिंग के लिए बनी प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयों का चुनाव करती। इस प्रक्रिया में अनुसंधान को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। साथ ही इसमें शिक्षकों, विद्यार्थियों, पाठ्यक्रम और दृष्टिकोण के अंतर्राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता होती है। चयन प्रक्रिया में सभी विषयों के लिए एकीकृत दृष्टिकोण रखा जाना चाहिए था। परन्तु चयनित संस्थान यह सिद्ध करते हैं कि ऐसा नहीं किया गया। विज्ञान और इंजीनियरिंग से जुड़े संस्थानों को चुनकर, मानविकी और सामाजिक विज्ञान से जुड़े विषयों की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई।
चीन ने अपने 100 ऐसे विश्वविद्यालयों पर अधिक ध्यान देकर उन्हें आगे बढ़ाना शुरू किया, जो अनुसंधान से जुड़े हुए थे। परिणामस्वरूप ये संस्थान अब विश्व-स्तर को प्राप्त कर चुके हैं। विश्व में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मानी जाने वाली क्यू एस रैंकिंग ने 9,000 विश्व विश्वविद्यालयों में 300 भारतीय विश्वविद्यालयों को चुना था। इनमें से 79 ही अंतिम रूप से चुने गए। दुर्भाग्यवश भारतीय चयन समिति को उन 79 विश्वविद्यालयों में से अधिक चयन योग्य संस्थान नहीं मिल पाए।
आने वाले एक दशक में भारत के 14 करोड़ युवा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश कर जाएंगे। 2018 की क्यू एस विश्व रैंकिंग में भारत के केवल तीन विश्वविद्यालयों को ऊपर के 250 संस्थानों में स्थान मिल सका है। सरकार को चाहिए कि वह वैश्विक रैंकिंग एजेंसियों की चयन-प्रक्रिया का संज्ञान ले, और उसके अनुकूल छः से अधिक संस्थानों को चुनने में गति दिखाए।
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